Thursday 19 May 2016

नन्ही परी - कविता

नन्ही परी - कविता


फूलों की मैं कलियाँ बनकर - माँ के मन की गुड़िया बनकर। 
इस दुनिया को देखा मैंने - पापा को पहचाना मैंने॥ 

दूर - दूर तक तन्हाई थी - दादी दर्द लिए बैठी थी। 
आस - पास के सारे बच्चे - मुझे देख कर खुश होते हैं॥ 

पापा की मैं इच्छा बनकर - दादा की प्रतीक्षा।
मम्मी की मैं रानी बेटी - दादी की हूँ परायी॥ 

फूला गाल बैठी हैं - मम्मी को कोस रही। 
दुनिया में क्यों लाई इसको - तूने मुझको दूर किया ॥ 

बड़ी हुई जब माँ की लाड़ली - अरमानो की रानी बनकर।
पापा के सपनों की रानी - अपने मन की हैं मनमानी॥

बहुत बड़ी हैं भीड़ खड़ी यह - आरक्षण की टोली बनकर।
माँ की बेटी मौन खड़ी हैं - सोच रही है तनहा होकर॥

-  मेनका

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