Saturday 8 October 2016

परिवार के एडमिरल साहब - कविता

परिवार के एडमिरल साहब - कविता


मग्न है वो भाव से भोजन बना रही।
सजा  रही है वो व्यंजनों को प्रेम में है मग्न॥

भाव में विभोर है थाली सजा रही।
दे दिया आवाज वो आ जाये खाने को॥

कर दिया डिटेल और में हो गया डिस्टर्ब।
सो रहा था नींद में जगा दिया तूने॥

बना कर रख दो खाना और तू हो जाओ फ्री।
मत बना रिपोर्ट और तू मत करो कमांड॥

सज रही सवर रही, मंदिर है जाने को।
चल दिए है साथ में साहब भी जाने को॥

घर के कपड़ो में देखकर बोली वह साहब से।
बार-बार बोला है मैंने मत करो तुम चेक॥

मैं जो बोलता हूँ तुम वही किया करो।
मेरी कही बातो को तुम यूँ कट मत किया करो॥

- मेनका

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