नेवल हॉस्पिटल - कविता
काश हम कस्तूरी में होते, काश हम भी नेवी में होते।
महाराष्ट्र के प्रांगण में, लोनावला के आँगन में॥
शिवाजी के गोद में, शोभ रही कस्तूरी है।
दिव्या मैम इसकी शान है तोह मिर्ज़ा सर इसके प्राण॥
प्रतिभाओं के फूलों और भावों की खुशबु से।
मरीज़ों में डालते है वो प्राण....॥
काश हम कस्तूरी में होते, काश हम भी नेवी में होते।
अस्पताल का रिसेप्शन हो या MI रूम।
अस्पताल का डिस्पेंसरी हो या हो यहाँ का लैब॥
अस्पताल का OPD हो या हो X-Ray रूम।
अस्पताल का फॅमिली वार्ड हो या हो जेंट्स वार्ड॥
अस्पताल का आपरेशन थिएटर हो या हो रसोई घर।
अस्पताल का सफाई हो या हो यहाँ की सुव्यवस्था॥
हर जगह बिखेरे ओह जुनूनों की रौशनी।
काश हम कस्तूरी में होते, काश हम भी नेवी में होते॥
हर मरीज़ों के घावों को तहे दिल से भरती।
हर मरीज़ों के भावों को तहे दिल से समझती॥
हर जगह बिखेरे वो प्रतिभावों की रौशनी।
अगर प्रतिभा उसकी दिया है तोह, जूनून उसकी बाती॥
सुव्यवस्था के तेलों से हर-पल जले यह बाती।
काश हम कस्तूरी में होते, काश हम भी नेवी में होते॥
दुश्मनों के बुरी नज़रों से वो खुद को बचाती।
अच्छे पलों को वो यूँ न गंवाती॥
सहजे-सँवारे वो सबके गुणों को।
बाहर भगाये वो अपने दुश्मनों को॥
उनकी लड़ाई बिमारी से जारी।
खुशियों को रहती गले वो लगाए॥
मरीज़ों के चेहरे पर खुशियाँ वो लाती।
काश हम कस्तूरी में होते, काश हम भी नेवी में होते॥
- मेनका
- मेनका
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