हमारी जीवन गाथा - कविता - पार्ट १
पार्ट - १
जीवन का ये वृक्ष विचित्र है,
कभी न रहता खाली|
कभी दिलाये माँ का आँचल,
कभी दिखाए सपने|
कभी चखाये रिश्तों का फल,
कभी लगाए चकरें|
जीवन का ये वृक्ष विचित्र है,
कभी न रहता खाली|
राजनीती का ये वृक्ष विचित्र है,
हर घर पर होता हावी|
औरत ही औरत का दुश्मन,
कभी न खाती तरसें|
अपनों को अपने से तोड़े,
अकड़ दिखाए हरदम|
जीवन का ये वृक्ष विचित्र है,
कभी न रहता खाली|
अंतर मन में दानव बैठा,
नकली नकाब साधू के जैसा|
शिक्षा को पैसो से जोड़े,
अंतर मन है खाली|
दुसरो के मुँह की रोटी को,
हरदम लेने की तैयारी|
जीवन का ये वृक्ष विचित्र है,
कभी न रहता खाली|
कॉपी करती जीवन जीता,
वीरों जैसा रहता|
इंसानों जैसे मानव को वो,
परेशान करे है हरपाल|
जीवन का ये वृक्ष विचित्र है,
कभी न रहता खाली|
- मेनका
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