Wednesday 18 October 2017

गोदांजाली (२४ जुलाई) - कविता

गोदांजाली (२४ जुलाई) - कविता



मेरी ममता के आँचल को सजाया तूने|
मेरी ज़िन्दगी की दशा को दिशा दिया तूने||
मेरे सुने गोद को हरा-भरा किया तूने|
पापा के आने की हर आहट को महसूस किया तूने||
अपने हर निवाले पर पापा को मिस किया तूने|
हमारे सूखे रेगिस्तान में वर्षा की फूहार है तू||
हमारे सूने घर में रौशनी बनकर आई तू|
हमारे रसोई की हर स्वाद और खुशबु है तू||
हमारी ज़िन्दगी के फूलों की पंखुड़ी है तू|
भाई के जीवन की सम्पूर्णता है तू||
हमारे हर त्यौहार की सजावट है तू|
हमारे अतीत की जान और प्राण है तू||
हमारे बीते हुए कल की धरोहर है तू|
अपने भाई के जीवन का राग है तू||
हमारे हर परेशानी का इलाज है तू|
भाई के जीवन की आशा है तू||
पापा के जीवन की परिभाषा है तू|
मेरे विचारों का कोरा कागज़ है तू||
मेरे हर गुत्थियों की सुलझन है तू|
हमारे का वो हर सुझाव है तू||
हमारे जीवन की रहस्यमयी किताब है तू|
हमारे गरिमा की नाक है तू||
हमारे परिवार की संस्कृति है तू|
पापा के जीवन का ख्वाब है तू||

- मेनका

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