Tuesday 29 May 2018

देह त्याग कर किधर गए? - कविता

देह त्याग कर किधर गए? - कविता 


हम सबको छोड़ चले पिताजी
न जाने कैसे किधर गए?
माँ का जीवन तहस-नहस कर
न जाने कैसे कहाँ गए?
किसे सुनाऊँ खुशियाँ मैं और
किसे बताऊँ अपनी व्यथा?
पापा बिन बस दुनिया अब तो,
बेगाना जैसा लगता हैं|
ऐसी क्या मजबूरी थी
निष्ठूर बन कैसे कहाँ गए?
न जाने कैसे किधर गए?

हम सबको छोड़ चले पिताजी
न जाने कैसे कहाँ गए?
याद में तेरी माँ ने अब तो,
खाना भी है छोड़ दिया|
हम सबकी आस मरोड़ चले
न जाने कैसे किधर गए?
विलख-विलख कर रोते बच्चे
कैसे छोड़ कर कहाँ गए?
किसे देख कर में इठलाऊँ?
भाग्य बड़ा बनकर इतराऊं|
बिना बताये अनकहे शब्द तुम,
लेकर कैसे कहाँ गए?

- मेनका

Sunday 20 May 2018

बेटी का संदेश - मायके के नाम - कविता

 बेटी का संदेश - मायके के नाम - कविता


पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
अगर अकेली मैं पड़ जाऊँ
बातों से साथ निभाना भइया
नहीं चाहिए खाना कपडा
भाभी को समझाना भइया
बच्चों को समझाना भइया
अपनी बात बताना भइया

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
समय भले तुम न दे पाओ
हिस्से की रोटी खा जाओ
नही चाहिए छप्पन व्यंजन
भावों की भूखी हूँ भइया
बहन बानी बाँधी मैं राखी
दिल में जगह बनाये रखना

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
कौल भले ही न कर पाओ
फ़ोन उठा तुम लेना भइया
ममता से है बना मायका
पिता छाँव का गहरा रिश्ता
भाभी तोह भावों की कुंजी
मेरी बात बताना भइया

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
ब्रत एकादशी के दिन आऊँगी
खाली हाथ नहीं आऊँगी
कहाँ से लाऊँ हीरे-मोती
करूँ मांग में सबकी पूरी
अनजाने की गलती भाभी
मुझे बता तुम देना भइया

- मेनका

वंश का वैभव (१८ अगस्त) - कविता

वंश का वैभव (१८ अगस्त) - कविता


भाद्र माह मन भावन आया|
त्योहारों की खुशियाँ लाया||
बना वंश वैभव संरक्षक|
जन्मदिन की खुशियाँ लाया||
मम्मी की आँखों का तारा|
पापा का है राज दुलारा||
बना बहन का रक्षक आया|
बाबा का वंशज बन आया||
भाद्र माह मन भावन आया|
भाई बहन का उत्सव आया||

आज़ादी अधिकार महोत्सव|
उत्सव की धुन सुनकर आया||
भारत के भावों का प्यारा|
पापा के प्राणों से प्यारा||
वृन्दावन की छटा निराली|
जन्म लिये है वृज बिहारी||
मथुरा में मन मोहन की धुन|
बना भक्त बन सुनने आया||
भाद्र माह अति सुन्दर आया|
कृष्ण जन्म  खुशियां लाया||

भाद्र माह मन भावन आया|
गणेश चतुर्थी घर-घर आये||
हरियाली है तीज सुहाये|
पारवती संग सखियाँ भावे||
शीव-शम्मू का ब्रत अति सुन्दर|
हरियाली छवि छटा सुहाये||
भाद्र मॉस पूर्णमासी के दिन|
आनन्द कन्द ब्रत मन मोहे सबको||
भाद्र माह मन भावन आया|
त्योहारों की खुशियाँ लाया||

- मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...